प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(a) महाभारत काल में राजतन्त्र
(b) बौद्ध युग में राजतन्त्र का स्वरूप।
उत्तर-
महाभारत काल में राजतंत्र
महाभारत काल में राजतंत्र परिपक्व अवस्था को पहुँच चुका था है। आर्यों ने उत्तर भारत के अतिरिक्त दक्षिण ध्रुव तक अपने राज्यों का विस्तार कर लिया था। महाभारत के काल में राजतंत्रों का वर्णन महाभारत के अलावा बौद्ध साहित्य, पाणिनी के अष्टाध्यायी, कौटिल्य के अर्थशास्त्र आदि ग्रन्थों में मिलता है। कौरव एवं पाण्डवों के बीच जो युद्ध हुआ उसमें अनेक राजाओं ने भाग लिया। इनकी सूची का उल्लेख महाभारत में मिलता है।
पाण्डवों के पक्ष में जो राजा लड़े उनके राज्य निम्नलिखित थे -
1. मध्य देश के राज्य - पांचाल, काशी, पूर्वी कौशल, मत्स्य, चेदि, दशार्थ, कारुष तथा पश्चिमी मगध।
2. पश्चिमी देश के राज्य - माधव, दशार्ह, आहुक, भोज, अन्धक, वृष्णि, सात्वत्, कूकुर और यादव।
3. उत्तर पश्चिमी राज्य - केकय और अभिसार।
4. दक्षिणी राज्य -पाण्ड्य, चोल, केरल और काँची।
कौरवों के पक्ष में लड़ने वाले राजाओं के राज्य निम्नलिखित थे-
1. पूर्वी राज्य - पूर्वी मगध, विदेह, प्राग्योतिष (असम), अंग-बंग, कलिंग, पुण्ड्र, आन्ध्र, मेकल तथा उक्कल।
2. पश्चिमी राज्य - सिन्धु, सौवीर, शाल्व, क्षुद्रक, मालव और अन्धक।
3. मध्य प्रदेश के राज्य - शूरसेन, कौशल और वत्स।
4. पश्चिम उत्तर के राज्य - पंचनद, मद्र, कबोज, त्रिगर्त, गांधार, कैकेय, बाल्हीक, अम्बष्ट, शिवि, खस, पुलिन्द, किरात, हंसपाद।
महाभारत के राजतंत्र निरंकुश न थे (Monarchy was not Absolute in the State of Mahabharat) - महाभारत के राजा शक्ति-सम्पन्न वीर एवं साहसी थे। पर वे प्रजापालक एवं उदार शासक थे। महाभारत में कहीं भी निरंकुश राजतंत्र का उल्लेख नहीं मिलता है। वास्तविकता यह है कि उनकी वित्तीय और न्यायिक शक्तियों पर अनेक प्रतिबन्ध लगे थे। न तो वे मनमाने ढंग से कर लगा सकते थे और न किसी को दण्ड दे सकते थे।
महाभारत के काल के राजतंत्र की व्यवस्था (Arrangement of States in Mahabharat Period) - महाभारत में राज्यों की कैसी व्यवस्था थी, उसका विस्तृत उल्लेख महाभारत कर्त्ता ने शान्तिपर्व में किया है। उसी के आधार पर यहाँ शासन व्यवस्था का वर्णन किया गया है.
(i) राजा का गुणवान होना (Virtuous King) - महाभारत काल के राजा प्रजा हितकारी होते थे। वे प्रजा को पुत्र समझकर उनका सदैव हित करते थे। वे कभी काम, क्रोध, लोभ, स्वेच्छा के वशीभूत होकर दण्ड नीति को प्रतिपादित न करते थे। उनका ध्यान मर्यादा को निभाने में होता था। शान्तिपर्व में उल्लेख है कि ऋषियों द्वारा उन्हें उपदेश दिया गया था, "जो धर्म नियत है, तुम उसका शंकारहित रूप से अनुसरण करो। तुम्हें क्या प्रिय है और क्या अप्रिय, इसको भूलकर प्रत्येक के साथ समान व्यवहार करो। काम, क्रोध, लोभ और मोह को तुम सर्वथा त्याग दो। जो कोई मनुष्य धर्म के मार्ग से विचलित हो उसे तुम शाश्वत धर्म का अनुसरण करते हुए दण्ड दो।"
(ii) अंग-भंग व्यक्ति राजा नहीं हो सकता था (King should not be Limbless) - यद्यपि महाभारत काल में यह परम्परा थी कि राजा का ज्येष्ठ पुत्र राजा का उत्तराधिकारी बनता था। इसका अभिप्राय यह था कि राजतंत्र वंशानुगत थे, पर राजा का शरीर से स्वरूप तथा पूर्ण होना आवश्यक था। राजपद के लिए योग्य राजकुमार ही होना आवश्यक था। अंग-भंग, अन्धा या कोढ़ी व्यक्ति राजसिंहासन पर नहीं बैठ सकता था।
(iii) पथ भ्रष्ट राजा को हटाना (Dethrone of the Corrupted King) - राजा ही राज्य में सर्वोच्च न था बल्कि ब्राह्मण वर्ग पथ भ्रष्ट राजा को पदच्युत कर सकता था। महाभारत में एक कथा शान्तिपर्व में आती है - "राजा बेन ने अपनी जनता की उपेक्षा की जिसके परिणामस्वरूप ऋषियों के नेतृत्व में जनता ने विद्रोह कर दिया और उसको पदच्युत कर उसके पुत्र वेणु को राजा बना दिया। वह अपने व्यवहार के कारण जीवनपर्यन्त शासन करता रहा।"
(iv) मन्त्रिमण्डल युक्त राज्य (State with Ministry) - महाभारत काल आते-आते सभा एवं समिति दोनों का प्रभाव समाप्त हो गया था। महाभारत में इन दोनों संस्थाओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता वरन् मंत्रिमण्डल का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। महाभारत के शान्तिपर्व में भीष्म का कथन है कि "राजा में जिन गुणों का होना आवश्यक है, वे सब किसी पुरुष में हों यह सम्भव नहीं। इसलिए यह आवश्यक है कि राजा सहायता एवं परमार्थ के लिए आमात्यों को नियुक्त करे।"
बौद्ध युग में राजतंत्र का स्वरूपं
जातक - साहित्य एवं ग्रन्थों में तत्कालीन राजतंत्रात्मक शासन प्रणालियों का भी परिचय मिलता है। बौद्ध साहित्य के अनुसार राजा की स्थिति, मन्त्रिमण्डल का प्रभाव, न्याय व्यवस्था आदि का उल्लेख यहाँ किया गया है।
राजा की स्थिति (Position of the King) - बौद्ध साहित्य में राजा की उत्पत्ति का वर्णन शायद महाभारत से लिया गया मालूम होता है। उसके अनुसार, राज्य से पहले अराजक दशा थी, धर्म का अभाव था, मत्स्य राज्य की स्थिति थी। अतः समाज में व्यवस्था हेतु राज्य संस्था की आवश्यकता अनुभव. हुई और राजा का योग्यता के आधार पर चुनाव किया गया।
राजा का उत्तराधिकारी (Heir of the King) - बौद्धकालीन राजा निर्वाचित भी होता था और कहीं-कहीं वंशाक्रमानुगत आधार पर नियुक्त होता था। राजा के गद्दी पर बैठने से पूर्व उसकी योग्यता जाँची जाती थी। योग्य सिद्ध होने पर ही उसे गद्दी पर बिठाया जाता था। राजा के शरीर का भी निरीक्षण होता था। शरीर से वह स्वस्थ एवं निरोग होना चाहिए। अन्धे, कोढ़ी एवं विकलांग राजपद नहीं पा सकते थे।
राजा के गुण अथवा योग्यता (Qualities and Abilities of King) - बौद्ध साहित्य में राजा के दस गुणों का उल्लेख किया गया है। ये दस गुण इस प्रकार से हैं दान, शील, तप, परित्याग, आर्जन मार्दक, अक्रोध, अहिंसा, शान्ति और अविरोधन आदि। प्रारम्भ में दानशीलता को भी एक विशेष गुण माना जाता था जैसाकि चुल्स पद्म जातक में लिखा है कि "राजा पद्म प्रतिदिन 6 लाख स्वर्ण मुद्रायें दान करता था।" राजा बड़े ठाट-बाट का जीवन बिताते थे। आमोद-प्रमोद में बड़ी रुचि लेते थे। अन्तःपुर बहुत सी रानियाँ होती थीं। सुरुचि जातक में एक कथा है कि " बनारस का राजा चाहता था कि वह अपनी कन्या का विवाह ऐसे राजा से करे जो एक पत्नीव्रत रहे।
मन्त्रिपरिषद् (Council of Ministers) - जातक साहित्य में उल्लेख आया है कि "मन्त्रि (अमात्य) बहुत होते थे। राजा को शासन सम्बन्धी विषयों में परामर्श देने का कार्य करते थे। अमात्यों का सब विद्याओं व शिल्पों में निष्णात होना आवश्यक माना जाता था। राजा की अनुपस्थिति या असमर्थता में वे शासन सूत्र अपने हाथ में ले लेते थे।'
नगर शासन - नगर शासन के लिए नगरपाल को 'नगरगुत्तिक' कहते थे। यह नगर में शान्ति व व्यवस्था के लिए उत्तरदायी था। रिश्वत उस काल में भी प्रचलित थी।
'सुलसा' जातक के अनुसार - "एक वैश्या एक हजार स्वर्ण मुद्रायें देकर अपने प्रेमी को छुड़वाने में सफल हो गई थी।
सेनाओं का प्रबन्ध - बौद्ध जातकों के अनुसार "सेनायें अपने राज्य के नागरिकों द्वारा ही गठित होती थीं। बाहरी सैनिकों को सेना में भर्ती करने की पद्धति न थी। पैतृक राजा व स्वदेशी सैनिकों का विशेष महत्व था। परन्तु धूवकारि जातक की कथा के अनुसार "कुरुदेश के इन्द्र पत्तन नाम के राजा धनञ्जय ने अपने पुराने सैनिकों की उपेक्षा कर नवीन सैनिकों को भर्ती करना प्रारम्भ कर दिया।"
पुर और जनपद (Paur and Janapada) : राज्य की राजधानी को पुर तथा शेष क्षेत्र को जनपद कहा जाता था। जनपद की सबसे छोटी इकाई ग्राम कहलाती थी। ग्राम का शासक ग्रमिक तथा ग्राम भोजक कहलाता था।
न्याय व्यवस्था (Judicial System) - बौद्ध साहित्य में बताया गया है कि बौद्ध युग में न्याय व्यवस्था इतनी मजबूत थी कि कोई भी विवाद न्यायालय तक नहीं जाता था। दण्ड व्यवस्था अत्यधिक कठोर थी। दण्ड के अन्तर्गत अंग-भंग और शारीरिक कष्ट को अनुचित नहीं माना जाता था। हाथी से कुचलाकर, काँटेदार कोड़ों से पिटवाकर, नाक-कान कटवाकर अपराधी को दण्डित किया जाता था।
|
- प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
- प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
- प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
- प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
- प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
- प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
- प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
- प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
- प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
- प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
- प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
- प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
- प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।